Premchand Ke Mata Pita Ka Kya Naam Tha – प्रेमचंद जी का हिंदी साहित्य में कद बहुत ऊंचा है। प्रेमचंद जी का लेखन कार्य ऐसी समृद्ध विरासत है, जिसके बिना हिंदी का विकास अधूरा माना जाएगा। मुंशी प्रेमचंद एक संवेदनशील लेखक, जागरूक नागरिक, कुशल वक्ता और संपादक थे। प्रेमचंद ने हिंदी कहानी और उपन्यास की ऐसी परंपरा विकसित की, जिसने एक पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया। प्रेमचंद जी के समृद्ध लेखन ने कई पीढ़ियों को प्रभावित किया, उन्होंने साहित्य की यथार्थवादी परंपरा की नींव भी रखी। तो आइये जानते है मुंशी प्रेमचंद जी के बारे में (About Premchand In Hindi) –
मुंशी प्रेमचंद के माता पिता का क्या नाम था (Munsi Premchand Ke Mata Pita Ka Kya Naam Tha)
मुंशी प्रेमचंद जी की माता का नाम – आनन्दी देवी (Anandi Devi), और पिता का नाम – मुंशी अजायबराय (Munshi Ajayabrai) था।
मुंशी प्रेमचंद जी के बारे में (About Premchand In Hindi)
31 जुलाई 1880 को वाराणसी के पास लमही गांव में प्रेमचंद जी का जन्म हुआ था। प्रेमचंद की मां का नाम आनंदी देवी था और पिता मुंशी अजायबराय लमही में डाकिया थे। उन्होंने अपनी शिक्षा उर्दू और फारसी से शुरू की और जीविका के लिए अध्यापन कार्य भी किया।
मुंशी प्रेमचंद का जीवन संघर्षों से भरा रहा। जब वे मात्र सात वर्ष के थे, तब उनकी मां का निधन हो गया और 14 वर्ष की आयु में उनके पिता का निधन हो गया। महज 15 वर्ष की आयु में उनकी पहली शादी हुई, लेकिन यह असफल रही।
प्रेमचंद आर्य समाज से प्रभावित थे, जो उस समय का बहुत बड़ा धार्मिक और सामाजिक आंदोलन था। उन्होंने विधवा विवाह का समर्थन किया और साल 1906 में अपनी प्रगतिशील परंपरा के तहत बाल विधवा शिवरानी देवी से विवाह किया। जिनसे तीन बच्चे हुए – अमृत राय, श्रीपत राय और कमला देवी श्रीवास्तव।
प्रेमचंद को बचपन से ही पढ़ने का शौक था। गरीबी से लड़ते हुए प्रेमचंद ने किसी तरह मैट्रिक तक की पढ़ाई पूरी की। बचपन में उन्हें पढ़ाई के लिए अपने गांव से नंगे पैर वाराणसी जाना पड़ता था। इसी बीच उनके पिता का निधन हो गया। प्रेमचंद को पढ़ाई का शौक था, वे आगे चलकर वकील बनना चाहते थे, लेकिन गरीबी ने उन्हें काफी परेशान किया। स्कूल जाने के झंझट से बचने के लिए उन्होंने एक वकील से ट्यूशन ली और उसी घर में एक कमरा लेकर रहने लगे। ट्यूशन के पांच रुपये में से तीन रुपये अपने परिवार को देने के बाद वे दो रुपये से अपना जीवन यापन करते रहे।
1898 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद प्रेमचंद जी एक स्थानीय स्कूल में अध्यापक बन गए। अध्यापक की नौकरी के साथ-साथ अपनी पढ़ाई भी जारी रखी और 1910 में अंग्रेजी, फारसी दर्शनशास्त्र और इतिहास विषयों के साथ इंटरमीडिएट पास किया। साल1919 में बीए उत्तीर्ण करने के बाद मुंशी प्रेमचंद की शिक्षा विभाग में इंस्पेक्टर के पद पर नियुक्ति हुई।
कमी के बावजूद प्रेमचंद हमेशा खुश रहते थे और सादा और सरल जीवन जीते थे। जीवन भर वे प्रतिकूलताओं और कटुता से खेलते रहे। वे इस खेल को एक शर्त मानते थे, जिसे वे हमेशा जीतना चाहते थे। यह भी कहा जाता है कि वे एक हंसमुख स्वभाव के थे। वे अपने मित्रों के प्रति उदार हृदय रखते थे, गरीबों और पीड़ितों के प्रति उनके मन में बहुत सहानुभूति थी। वे हमेशा सादे ग्रामीण परिधान पहनते थे। उन्होंने अपना अधिकांश जीवन गांव में बिताया। वे दिखावटीपन और दिखावे से कोसों दूर थे। सभी महापुरुषों की तरह वे अपना काम खुद करना पसंद करते थे।
प्रेमचंद हिंदी सिनेमा के सबसे लोकप्रिय लेखकों में से एक हैं। सत्यजीत रे ने उनकी दो कहानियों पर यादगार फ़िल्में बनाईं। 1977 में शतरंज के खिलाड़ी और 1981 में सद्गति। प्रेमचंद जी के निधन के उपरांत करीबन दो साल बाद सुब्रमण्यम द्वारा साल 1938 में सेवासदन उपन्यास पर एक फ़िल्म बनाई गयी, जिसमें सुब्बालक्ष्मी मुख्य भूमिका में रही थी। 1977 में मृणाल सेन ने प्रेमचंद की कहानी कफ़न पर आधारित ओका ऊरी कथा नाम से तेलुगु फ़िल्म बनाई जिसे सर्वश्रेष्ठ तेलुगु फ़िल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला। 1963 में गोदान और 1966 में गबन उपन्यासों पर लोकप्रिय फ़िल्में बनीं। साल 1980 में प्रेमचंद जी के साबित उपन्यास पर आधारित टीवी सीरियल निर्मला भी काफ़ी लोकप्रिय साबित हुआ।
मुंशी प्रेमचंद की स्मृति में भारतीय डाक विभाग ने 31 जुलाई 1980 को उनकी जन्मशती पर 30 पैसे का डाक टिकट जारी किया। गोरखपुर के जिस स्कूल में वे अध्यापक थे, प्रेमचंद साहित्य संस्थान की स्थापना की गयी।
इसके बरामदे में एक भित्ति भित्तिलेख है, यहां उनसे संबंधित चीजों का एक संग्रहालय भी है। वहां उनकी एक प्रतिमा भी है। प्रेमचंद की पत्नी शिवरानी देवी ने प्रेमचंद घर में शीर्षक से उनकी जीवनी लिखी और उनके व्यक्तित्व के उस हिस्से को उजागर किया, जिससे लोग अनभिज्ञ थे। उनके अपने बेटे अमृत राय ने ‘कलम का सिपाही’ शीर्षक से अपने पिता की जीवनी लिखी है। उनकी सभी पुस्तकों का अंग्रेजी और उर्दू में अनुवाद हो चुका है, उनकी कहानियाँ चीनी, रूसी आदि कई विदेशी भाषाओं में लोकप्रिय हो चुकी हैं।