Prithviraj Chauhan History In Hindi – भारत की पावन भूमि पर सदियों से अनेक वीरों ने जन्म लिया और उन्होंने भारत माता के मान, सम्मान और गौरव के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। ऐसे ही एक वीर राजा थे पृथ्वीराज चौहान, जो चौहान वंश में जन्मे अंतिम हिंदू शासक थे। जिन्होंने मात्र 11 वर्ष की आयु में अपने पिता की मृत्यु के बाद दिल्ली और अजमेर का शासन संभाला और उसका विस्तार भी किया।
कहा जाता है कि पृथ्वीराज चौहान ही एकमात्र ऐसे वीर trektape राजा थे, जिन्होंने मोहम्मद गौरी से युद्ध कर उसके राज्य पर कब्जा किया था। उसके बाद कोई भी हिंदू राजा ऐसा नहीं हुआ, जिसने इस तरह अपनी बहादुरी साबित की हो।
पृथ्वीराज चौहान का जीवन परिचय और इतिहास – Prithviraj Chauhan History In Hindi
पृथ्वीराज चौहान का प्रारंभिक जीवन –
महान वीर व पराक्रमी योद्धा पृथ्वीराज का जन्म 1149 में पाटन (गुजरात राज्य) में हुआ था। उनके पिता का नाम महाराजा सोमेश्वर और माता का नाम कर्पूरा देवी था। उनके पिता अजमेर के राजा थे। जब वे 11 वर्ष के थे, तब उनके पिता की मृत्यु हो गई, फिर उन्होंने छोटी उम्र में ही अजमेर का कार्यभार संभाला और अजमेर के उत्तराधिकारी बने।
उनका जन्म उनके माता-पिता के विवाह के 12 वर्ष बाद हुआ था, जिसके कारण राज्य में कई लोगों को उनका उत्तराधिकारी बनने से नापाबंदी थी, जिसके कारण opgram वे हमेशा उनके खिलाफ षड्यंत्र करते रहते थे। लेकिन पृथ्वीराज चौहान एक कुशल शासक बनकर जनता की उम्मीदों पर खरे उतरे।
पृथ्वीराज चौहान की शिक्षा –
पृथ्वीराज चौहान ने सरस्वती कंठाभरण विद्यापीठ से शिक्षा प्राप्त की। पृथ्वीराज चौहान ने युद्ध की भी शिक्षा प्राप्त की और बाद में एक कुशल योद्धा बने। उन्हें राय पिथौरा के नाम से भी जाना जाता था। वे बचपन से ही एक कुशल योद्धा थे। बचपन से ही उन्होंने शब्दभेदी बाण विद्या का अभ्यास किया था, जिसके माध्यम से वे बिना देखे ही ध्वनि के आधार पर बाण चला सकते थे।
पृथ्वीराज चौहान ने संस्कृत, प्राकृत, पैशाची, शौरसेनी, मागधी और अपभ्रंश सहित छह भाषाएँ भी सीखीं। इसके अलावा उन्होंने मीमांसा, वेदांत, पुराण, इतिहास, सैन्य विज्ञान, गणित और चिकित्सा भी सीखी। वे घोड़े और हाथी को नियंत्रित करने में भी माहिर थे।
पृथ्वीराज चौहान का दिल्ली उत्तराधिकार —
पृथ्वीराज चौहान की माता कपूरी देवी अपने पिता की इकलौती संतान थीं, जिसके कारण कपूरी देवी के पिता महाराजा अंगनपाल, जो दिल्ली के राजा थे, इस बात को untoldshayari लेकर चिंतित थे कि उनकी मृत्यु के बाद उनके साम्राज्य की कमान कौन संभालेगा?
ऐसा सोचते हुए उनके मन में पृथ्वीराज चौहान को उनकी मृत्यु के बाद अपना उत्तराधिकारी बनाने का विचार आया। फिर पृथ्वीराज चौहान के माता-पिता दोनों की सहमति से उन्होंने पृथ्वीराज चौहान को दिल्ली का उत्तराधिकारी बनाने का निर्णय लिया और फिर 1166 में महाराजा अंगनपाल की मृत्यु के बाद पृथ्वीराज चौहान को दिल्ली की गद्दी पर नए राजा के रूप में अभिषेक किया गया।
पृथ्वीराज चौहान के साम्राज्य का विस्तार —
पृथ्वीराज चौहान ने अपने पिता की मृत्यु के बाद अजमेर की भी कमान संभाली, उसके बाद उन्होंने दिल्ली तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया। उसके बाद उन्होंने चंदेल शासकों को हराकर अपने साम्राज्य का विस्तार पड़ोसी राज्य तक किया। उन्होंने चालुक्य वंश के राजाओं के साथ युद्ध भी लड़ा और एक कुशल शासक बनकर लोगों की उम्मीदों पर खरे उतरे। उन्होंने लोगों के कल्याण के लिए कई वीरतापूर्ण कार्य भी किए।
पृथ्वीराज चौहान और राजकुमारी संयोगिता की प्रेम कहानी —
पृथ्वीराज चौहान और राजकुमारी संयोगिता की प्रेम कहानी बहुत रोचक है। संयोगिता राजा जयचंद की पुत्री थी, जो कन्नौज के राजा थे। संयोगिता बचपन से ही बहुत सुंदर थी और उसने अपनी सखियों से पृथ्वीराज चौहान की वीरता की बहुत सी कहानियाँ सुनी थीं, जिसके कारण वह एक बार पृथ्वीराज चौहान को देखना चाहती थी।
इसी बीच एक बार दिल्ली से पन्नाराय नामक चित्रकार दिल्ली की खूबसूरती और राजा पृथ्वीराज का चित्र लेकर कन्नौज आया था। जब रानी संयोगिता को इस बात का पता चला तो उसने उस चित्रकार को अपने पास बुलाया। संयोगिता ने चित्रकार पन्नाराय से पृथ्वीराज चौहान का चित्र दिखाने का अनुरोध किया।
चित्र देखते ही संयोगिता पृथ्वीराज चौहान पर मोहित हो जाती है, जिसके बाद वह चित्रकार पन्नाराय से उसका चित्र बनाने और पृथ्वीराज चौहान को अपने दिल की इच्छा बताने के लिए कहती है।
चित्रकार पन्नाराय रानी संयोगिता का चित्र बनाकर पृथ्वीराज चौहान को भेंट करता है और दिल की इच्छा भी बताता है। चित्र में संयोगिता की सुंदरता देखकर पृथ्वीराज चौहान भी उसकी ओर आकर्षित हो जाते हैं। धीरे-धीरे वे एक-दूसरे को प्रेम पत्र लिखते हैं और उनका प्रेम और भी बढ़ता जाता है।
अब संयोगिता और पृथ्वीराज चौहान की प्रेम कहानी धीरे-धीरे राज्य के अन्य लोगों के कानों तक पहुँचने लगी। जब संयोगिता के पिता जयचंद को इस बारे में पता चलता है, तो वह संयोगिता के लिए स्वयंवर का आयोजन करते हैं। क्योंकि जयचंद की पृथ्वीराज चौहान से दुश्मनी थी, जिसके कारण वह नहीं चाहते थे कि दोनों एक-दूसरे से विवाह करें।
जयचंद ने अपनी बेटी के लिए स्वयंवर का आयोजन किया, जहाँ कई देशों के राजकुमारों को आमंत्रित किया गया था। वहाँ पृथ्वीराज चौहान का अपमान करने के लिए जयचंद ने किले के बाहर दरवाजे पर द्वारपाल के स्थान पर पृथ्वीराज चौहान की मूर्ति लगाने का आदेश दिया।
संयोगिता पहले ही पत्र में पृथ्वीराज चौहान को उसका अपहरण करने का संदेश भेजती है। उसके बाद जब संयोगिता पृथ्वीराज चौहान की मूर्ति पर माला डालने आती है, तो वह पृथ्वीराज चौहान की मूर्ति पर माला डाल देती है, जिसे देखकर उसके पिता अपमानित और क्रोधित हो जाते हैं।
इस बीच संयोगिता का पत्र पढ़कर पृथ्वीराज चौहान स्वयंवर में पहुंच जाते हैं और संयोगिता की सहमति से वह संयोगिता का अपहरण कर लेते हैं और उसे अपनी राजधानी ले जाते हैं, जहां उन दोनों का विवाह हो जाता है।
पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी का युद्ध —
पृथ्वीराज की सेना बहुत बड़ी थी जिसमें 3 लाख सैनिक और 300 हाथी थे, जिसके कारण उन्होंने अपने राज्य का बहुत विस्तार किया। पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच 18 युद्ध हुए, जिसमें उन्होंने मोहम्मद गौरी को 17 बार हराया। अठारहवीं बार वे मोहम्मद गौरी से हार गए लेकिन अंततः उन्होंने मोहम्मद गौरी को मार डाला।
पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच पहला युद्ध सरहिंद किले के पास तराई नामक स्थान पर हुआ था। पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच पहला युद्ध पंजाब में अपने शासन के विस्तार के दौरान हुआ था। पृथ्वीराज चौहान ने पंजाब में भी अपने राज्य का विस्तार करने का फैसला किया। लेकिन उस समय पूरे पंजाब पर मोहम्मद गौरी का शासन था, जिसके कारण मोहम्मद गौरी से युद्ध किए बिना पृथ्वीराज चौहान के लिए पंजाब पर शासन करना असंभव था।
इसलिए पृथ्वीराज चौहान ने अपनी विशाल सेना के साथ मोहम्मद गौरी पर हमला किया। दोनों के बीच युद्ध हुए, अंत में मोहम्मद गौरी हार गया और पृथ्वीराज चौहान पंजाब पर शासन करने लगे। उसके बाद भी मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान पर कई बार आक्रमण किया लेकिन हर बार उसकी हार हुई।
लेकिन फिर अंत में जब मोहम्मद गोरी को पृथ्वीराज चौहान और जयचंद के बीच की दुश्मनी का पता चला तो उसने जयचंद की मदद से पृथ्वीराज चौहान पर दोबारा आक्रमण कर दिया। यह युद्ध भी तराइन के मैदान में हुआ था।
उस समय संयोगिता के स्वयंवर में हुई घटना के कारण कई राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान से निराश हो गए थे, जिसके कारण उस समय किसी भी राजपूत राजा ने पृथ्वीराज चौहान का साथ नहीं दिया, जिसके कारण वह अकेले रह गए।
ऐसी स्थिति में पृथ्वीराज चौहान ने अपने 300000 सैनिकों के साथ अकेले ही मोहम्मद गोरी का सामना किया। लेकिन मोहम्मद गोरी की सेना में अच्छे घुड़सवार थे, जिन्होंने चारों तरफ से घेर लिया। इसके कारण पृथ्वीराज चौहान की हार हुई।
जिसके बाद गोरी, पृथ्वीराज चौहान और चंद्र बरदाई को बंदी बना लिया गया। जयचंद ने पृथ्वीराज चौहान को धोखा दिया और उसे भी अपने विश्वासघात का परिणाम भुगतना पड़ा। मोहम्मद गोरी ने जयचंद को भी मार डाला। इस तरह पृथ्वीराज चौहान को हराकर मोहम्मद गोरी पूरे पंजाब, दिल्ली, अजमेर और कन्नौज पर फिर से कब्ज़ा कर लेता है।
इसके बाद कोई भी राजपूत शासक पृथ्वीराज चौहान की तरह दिल्ली पर दोबारा कब्ज़ा करने के लिए अपनी बहादुरी साबित नहीं कर पाया।
पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु —
पृथ्वीराज को हराने के बाद गोरी पृथ्वीराज चौहान और चंदबरदाई को बंदी बनाकर अपने राज्य में ले आता है, जहाँ वह पृथ्वीराज चौहान को खूब यातनाएँ देता है। यहाँ तक कि वह पृथ्वीराज चौहान की आँखों को गर्म लोहे की छड़ से जला देता है, जिससे पृथ्वीराज चौहान की आँखों की रोशनी चली जाती है।
इसके बाद मोहम्मद गोरी पृथ्वीराज चौहान से उनकी मृत्यु से पहले उनकी आखिरी इच्छा पूछता है, तब चंदबरदाई की सलाह पर पृथ्वीराज चौहान शब्दभेदी बाण चलाने का करतब दिखाने की इच्छा जाहिर करते हैं।
तब चंदबरदाई एक श्लोक पढ़ते हैं “चार बांस चौबीस गज, अङ्गुल अष्ट प्रमान। ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान।।”, जिसके माध्यम से वह पृथ्वीराज चौहान को संकेत देता है कि मोहम्मद गौरी कितनी ऊंचाई पर बैठा है ताकि पृथ्वीराज चौहान उस ऊंचाई पर निशाना साध सके।
उसी संकेत पर पृथ्वीराज चौहान एक तीर चलाता है और एक ही तीर से गौरी के मस्तिष्क को छेद देता है। उसके बाद अंत में अपनी दुर्दशा से बचने के लिए पृथ्वीराज चौहान और चंदबरदाई एक दूसरे को मार देते हैं और मर जाते हैं।
पृथ्वीराज चौहान की पत्नियां —
- जम्भावती पडिहारी
- पंवारी इच्छनी
- दाहिया
- जालन्धरी
- गूजरी
- बडगूजरी
- यादवी पद्मावती
- यादवी शशिव्रता
- कछवाही
- पुडीरनी
- शशिव्रता
- इन्द्रावती
- संयोगिता गाहडवाल
ध्यान दे – चंदबरदाई पृथ्वीराज के बचपन के मित्र थे। वे पृथ्वीराज के दरबार के दरबारी कवि भी थे। चंदबरदाई ने पृथ्वीराज चौहान की आत्मा पर आधारित ‘पृथ्वीराज रासो’ नामक पुस्तक भी लिखी थी। चंदबरदाई द्वारा पढ़े गए श्लोकों के कारण ही पृथ्वीराज आठवीं बार युद्ध में शब्दभेदी बाण चलाकर मोहम्मद गौरी को मार पाते हैं।