Jaishankar Prasad Ka Jivan Parichay In Hindi – जयशंकर प्रसाद छायावादी युग के कुछ प्रमुख लेखकों में से एक हैं। छायावादी युग को जयशंकर प्रसाद के नाम पर प्रसाद युग भी कहा जाता है। छायावाद के चार स्तंभों में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा के साथ जयशंकर प्रसाद का नाम भी आता है। प्रसाद जी एक महान नाटककार, बेहतरीन कहानीकार, उपन्यासकार और महान कवि हुआ करते थे।
आज के इस लेख में हम आपको जयशंकर प्रसाद जी के जीवन परिचय से अवगत कराने वाले है। इसलिए इस लेख के अंत तक बने रहे। तो आइये जानते है जयशंकर प्रसाद की जीवनी/ जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय इन हिंदी में (Jaishankar Prasad Jivan Parichay In Hindi) –
जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय कक्षा 10 (Jaishankar Prasad Ka Jivan Parichay In Hindi / Jaishankar Prasad Ki Jivani)
जयशंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी, 1889 को काशी के एक प्रसिद्ध वैश्य परिवार में हुआ था। उनका परिवार बहुत समृद्ध था और “सुंघनी साहू” के नाम से प्रसिद्ध था। प्रसादजी की माता का नाम मुन्नी देवी और पिता का नाम बाबू देवीप्रसाद था जो स्वयं साहित्य प्रेमी हुआ करते थे। इस प्रकार प्रसादजी को जन्म से ही साहित्यिक वातावरण मिला। प्रसादजी ने 9 वर्ष की छोटी सी आयु में ही एक कविता की रचना की, जिसे पढ़कर उनके पिता बाबू देवीप्रसाद जी ने उन्हें महान कवि बनने का आशीर्वाद दिया।
प्रसादजी ने बचपन में अपने माता-पिता के साथ देश के विभिन्न तीर्थ स्थानों की यात्रा की। कुछ समय बाद उनके माता-पिता की मृत्यु हो गई। उनके बड़े भाई श्री शंभूनाथ जी ने उनकी शिक्षा की व्यवस्था की। सबसे पहले प्रसादजी का नाम “क्वींस कॉलेज” में दर्ज कराया गया, पर वहां उनका मन नहीं लगा और फिर अंत में उन्होंने घर पर ही योग्य शिक्षकों से अंग्रेजी और संस्कृत की पढ़ाई करना शुरू कर दिया था।
जब वे 17 वर्ष के थे, तब उनके बड़े भाई शंभूनाथ जी का निधन हो गया। उन्होंने तीन विवाह किए, लेकिन तीनों ही पत्नियों की असमय मृत्यु हो गई। इसी बीच उनके छोटे भाई की भी मृत्यु हो गई। लेकिन विपरीत परिस्थितियों में भी उन्होंने अपना धैर्य बनाए रखा। उन्होंने स्वाध्याय कभी नहीं छोड़ा। वे घर पर ही वेद, पुराण, इतिहास, दर्शन, संस्कृत, फारसी, अंग्रेजी और हिंदी का गहन अध्ययन कर हिंदी की सेवा में लगे रहे।
लेकिन कई असामयिक मौतों के कारण वे भीतर से टूट चुके थे। संघर्ष और चिंताओं ने उनके स्वास्थ्य को बहुत नुकसान पहुंचाया। क्षय रोग से पीड़ित होने के कारण 15 नवम्बर, 1937 ई. को 47 वर्ष की आयु में वे काशी में परमधाम को प्राप्त हुए।
जयशंकर प्रसाद का साहित्यिक परिचय (Jaishankar Prasad In Hindi)
जयशंकर प्रसाद हिंदी की सभी प्रचलित विधाओं में लेखन कार्य करने वाले छायावादी युग के प्रमुख लेखक और कवि रहे हैं। छायावाद के चार स्तंभों में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा के साथ उनका नाम भी आता है। प्रसाद का साहित्य जीवन की कोमलता, माधुर्य, शक्ति और ओज का साहित्य माना जाता है।
छायावादी काव्य की चरम कल्पना, सौन्दर्य का सूक्ष्म चित्रण, प्रकृति प्रेम, देश प्रेम और शैली की लाक्षणिकता उनके कविता की प्रमुख विशेषताएं हैं। इतिहास और दर्शन में उनकी गहरी रुचि थी जो उनके साहित्य में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। उन्होंने अपनी रचनाओं में भारत के गौरवशाली अतीत का चित्रण किया है।
प्रसाद जी ने भारतीय इतिहास और दर्शन का अध्ययन किया और उसके आधार पर ऐतिहासिक नाटकों के क्षेत्र में क्रांति प्रस्तुत की। उन्होंने छोटी सी उम्र में ही उत्कृष्ट ग्रंथों की रचना करके हिंदी साहित्य को समृद्ध किया। उनका पूरा जीवन भारत माता की आराधना को समर्पित रहा।
जयशंकर प्रसाद की प्रमुख रचनाएँ इन हिंदी में (Jaishankar Prasad ki Pramukh Rachnaye In Hindi)
1) नाटक -अजातशत्रु, ध्रुवस्वामिनी, विशाख, चन्द्रगुप्त, स्कन्दगुप्त, राज्यश्री, कामना, जनमेजय का नागयज्ञ, सज्जन और प्रायश्चित, करुणालय, एक घूँट
2) कहानी-संग्रह -छाया, इन्द्रजाल, प्रतिध्वनि, आकाशदीप तथा आँधी
3) काव्य – कामायनी (महाकाव्य), आँसू, झरना, महाराणा का महत्त्व, लहर, कानन-कुसुम
4) उपन्यास – कंकाल, तितली, इरावती (अपूर्ण)
5) निबन्ध-संग्रह – काव्य कला
जयशंकर प्रसाद की भाषा शैली (Jaishankar Prasad ki Bhasha Shaili In Hindi Mein)
प्रसादजी की भाषा शुद्ध, रोचक, साहित्यिक और संस्कृतनिष्ठ खड़ीबोली है। हर शब्द मोती की तरह जड़ा हुआ है। उनकी शैली के विभिन्न रूप इस प्रकार हैं –
(1) वर्णनात्मक शैली – प्रसादजी ने अपने उपन्यासों, नाटकों, कहानियों में घटनाओं का वर्णन करते समय इस शैली को अपनाया है।
(2) आलंकारिक शैली – प्रसादजी स्वभाव से कवि थे, इसलिए उनके गद्य में भी विभिन्न अलंकारों का प्रयोग हुआ है।
(3) भावात्मक शैली – प्रसादजी का गद्य भी भावों के चित्रण में काव्यात्मक हो जाता है। इसमें भाषा अलंकृत और काव्यात्मक है। यह शैली उनकी लगभग सभी रचनाओं में देखने को मिलती है।
(4) चित्रात्मक शैली – यह शैली प्रकृति वर्णन और रेखाचित्रों में पाई जाती है।
(5) इसके अलावा प्रसादजी ने सूक्ति शैली, संवाद शैली, विचारात्मक शैली और शोध शैली का भी प्रयोग किया है।