Karva Chauth Ki Kahani In Hindi – कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी के दिन सुहागिन स्त्रियों द्वारा करवा चौथ का व्रत किया जाता है। पति की लंबी आयु और अखंड सौभाग्य के लिए इस दिन भालचंद्र गणेश जी की पूजा की जाती है। करवा चौथ में भी गणेश चतुर्थी व्रत की तरह दिनभर उपवास रखने और रात में चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही भोजन या फलाहार लेने का नियम है। यह व्रत विवाहित महिलाएं अपने परिवार की परंपरा के अनुसार रखती हैं। यह व्रत लगातार 12 या 16 साल तक रखा जाता है। इसके बाद इसका उद्यापन भी किया जा सकता है। जो महिलाएं आजीवन करवा चौथ का व्रत रखना चाहती हैं, वे यह व्रत रख सकती हैं। तो आइये जानते है करवा चौथ व्रत कथा (Karva Chauth Vrat Katha In Hindi) –
करवा चौथ की कहानी / करवा चौथ की कथा इन हिंदी – Karva Chauth Ki Kahani
करवा चौथ की कहानी या करवा चौथ व्रत कथा को लेकर दो तरह की कथाएं या कहानियां प्रचलित है। इसलिए आज हम आपको दोनों कहानी या कथा के बारे में बताने जा रहे है, जो इस व्रत के दौरान सबसे ज्यादा प्रचलित है, और सबसे ज्यादा सुनी, सुनाई और पढ़ी जाती है। तो आइये जानते है करवा चौथ की व्रत कथा (Karwa Chauth Ki Vrat Katha In Hindi) –
1) साहूकार के सात बेटे और करवा – Karva Chauth Ki Katha In Hindi
बात बहुत समय पहले है, एक साहूकार के सात बेटे और करवा नाम की उनकी एक प्यारी बहन थी। सातों भाई अपनी बहन करवा से बहुत ही प्यार करते थे। यंहा तक वे सबसे पहले अपनी बहन करवा को खाना खिलाते और फिर खुद खाते।
एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी। शाम को जब भाई अपना व्यापार बंद करके घर आए, तो देखा कि उनकी बहन बहुत परेशान है। सभी भाई भोजन करने बैठ गए और अपनी बहन करवा से भी भोजन करने के लिए आग्रह करने लगे, पर बहन ने अपने भाइयो को बताया कि वह आज करवा चौथ का निर्जला व्रत रख रही है और वह चांद को देखकर अर्घ्य देने के बाद ही कुछ खा सकती है। चूंकि चांद अभी तक नहीं निकला था, इसलिए वह भूख-प्यास से बेचैन थी।
सबसे छोटा भाई अपनी बहन की हालत नहीं देख पाता, इसलिए वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर ऐसा लगता है जैसे चतुर्थी का चांद निकल रहा हो।
इसके बाद भाई अपनी बहन से कहता है कि चांद निकल आया है, तुम अर्घ्य देकर भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़ती है और चांद को देखती है, उसे अर्घ्य देती है और खाना खाने बैठ जाती है।
जब वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है तो उसे छींक आती है। जब वह दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें से एक बाल निकलता है और जैसे ही वह तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश करती है तो उसे अपने पति की मृत्यु का समाचार मिलता है। वह दुखी हो जाती है।
उसकी भाभी उसे सारी सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा किस कारण से हुआ? करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से तोड़ने की वजह से देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है।
सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उसे दोबारा जीवित करेगी। वह पूरे एक वर्ष तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है, शव की देखभाल करती है, और उस पर उगने वाली सुईनुमा घास को एकत्रित करती जाती है।
एक साल बाद यह दिन फिर से वापस आता है, एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियाँ करवा चौथ पर व्रत रख रही होती हैं। जब भाभियाँ उसका आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से ‘यम सुई ले लो, पिय सुई दे दो, मुझे भी अपनी तरह ही सुहागिन बना दो’ ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने को कह कर चली जाती है।
इस प्रकार जब छठी भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उससे कहती है कि चूँकि सबसे छोटे भाई के कारण उसका व्रत टूटा था, इसलिए उसकी पत्नी में ही तुम्हारे पति को जीवित करने की शक्ति है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और तब तक नहीं छोड़ना जब तक वह तुम्हारे पति को जीवित न कर दे, यह कहकर वह चली जाती है।
सबसे अंत में सबसे छोटी भाभी आती है। करवा उससे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोल करने लगती है। यह देख करवा उसे कसकर पकड़ लेती है और अपने पति को जीवित करने के लिए कहती है। भाभी छुड़ाने के लिए खरोंचती और खींचती है, पर करवा छोड़ती नहीं है।
अंत में उसकी तपस्या को देखकर भाभी नरम पड़ जाती है और अपनी छोटी उंगली काटकर उसमें से अमृत उसके पति के मुंह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्री गणेश-श्री गणेश कहता हुआ जीवित हो जाता है। इस तरह भगवान की कृपा से करवा को उसकी छोटी भाभी के माध्यम से उसका पति वापस मिल जाता है।
हे श्री गणेश- माता गौरी, जिस प्रकार करवा को आपसे सुहागिन होने का वरदान मिला है, वैसा ही सभी सुहागिनों को मिले।
2) मगरमच्छ, यमराज और करवा – Karwa Chauth Vrat Katha In Hindi
देवी करवा अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के किनारे रहती थी। एक दिन जब करवा का पति नदी में स्नान करने गया तो एक मगरमच्छ ने उसका पैर पकड़ लिया और उसे नदी में खींचने लगा। मृत्यु को निकट देखकर करवा का पति करवा को पुकारने लगा। करवा दौड़कर नदी की ओर गई और मगरमच्छ को उसके पति को मृत्यु के मुंह में ले जाते देखा।
करवा ने तुरंत एक कच्चा धागा लिया और मगरमच्छ को एक पेड़ से बांध दिया। करवा के सतीत्व के कारण मगरमच्छ कच्चे धागे से इस प्रकार बंधा कि वह जरा भी हिल नहीं पा रहा था। करवा के पति और मगरमच्छ दोनों के जीवन खतरे में थे। करवा ने यमराज को बुलाया और उनसे अपने पति को जीवनदान देने और मगरमच्छ को मृत्युदंड देने के लिए कहा।
यमराज ने कहा मैं ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि मगरमच्छ का अभी कुछ जीवन शेष है और तुम्हारे पति का जीवन समाप्त हो चुका है। क्रोधित करवा ने यमराज से कहा यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो मैं आपको श्राप दे दूंगी। सती के श्राप से भयभीत यमराज ने तुरंत मगरमच्छ को यमलोक भेज दिया और करवा के पति को जीवनदान दिया।
इसलिए करवा चौथ के व्रत के दौरान विवाहित महिलाएं करवा माता से प्रार्थना करती हैं कि हे करवा माता, जैसे आप अपने पति को मृत्यु के चंगुल से वापस ले आई, वैसे ही कृपया मेरे पति की भी रक्षा करें।
करवा माता की तरह सावित्री ने भी बरगद के पेड़ के नीचे कच्चे धागे से अपने पति को लपेटा था। कच्चे धागे में लिपटा प्यार और विश्वास ऐसा था कि यमराज सावित्री के पति के प्राण अपने साथ नहीं ले जा सके। यमराज को सावित्री के पति के प्राण लौटाने पड़े और सावित्री को वरदान देना पड़ा कि उनका सुहाग हमेशा रहेगा और दोनों लंबे समय तक साथ रहेंगे।